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हिन्दुस्तानी प्रचार सभा

Hindustani Prachar Sabha

Gandhi

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  • भारत की तस्वीर बदलने की दिशा में एक पहल
  • अंतर महाविद्यालयीन वाक् स्पर्धा
  • पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय में वाक् स्पर्धा एवं राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन
  • शिक्षा से संस्कार पैदा होते है – डॉ. भूषण कुमार उपाध्याय
  • महात्मा गाँधी हिंदी पत्रिका प्रकाशन पुरस्कार 2019-20
  • 21-22 सितम्बर 2019 को आयोजित अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में
    हिंदुस्तानी ज़बान पत्रिका के क़ैदी विशेषांक का लोकार्पण
  • धर्मनिरपेक्षता हमारे लोकतंत्र का प्राण तत्त्व
  • मानसिक स्वास्थ्य कार्यशाला
  • अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी दिवस
  • गाँधी निर्वाण दिवस पर वाक् स्पर्धा का आयोजन
  • हिन्दी कथा साहित्य के विविध आयाम विषय
  • पटना के बेऊर जेल में पुस्तकालय का उद्घाटन
  • महिला सशक्तीकरण पर द्वि-दिवसीय कार्यशाला
  • जेल में पुस्तकालय फोटो तेलंगाना
  • Sri Lanka Library Inauguration
  • Mauritius Library Inauguration
  • परी कथाओं का लोकार्पण समारोह
  • महिलाओं और बच्चों पर आधारित सम्मेलन
  • जेलों में सभा पुस्तकालय

  • दीर्घा

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    धर्मनिरपेक्षता हमारे लोकतंत्र का प्राण तत्त्व

    27-28 दिसम्बर 2018 को हिन्दुस्तानी प्रचार सभा मुंबई द्वारा ‘धर्मनिरपेक्षता हमारे लोकतंत्र का प्राण तत्त्व’ पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन बेंगलुरु में किया गया। इस आयोजन में वहाँ के स्थानीय जय भारती हिन्दी विद्यालय ने सहयोग किया। दो दिन के इस आयोजन के उद्घाटन सत्र को सम्बोधित करते हुए ‘सभा’ के निदेशक (कार्यक्रम) संजीव निगम ने संगोष्ठी के आयोजन के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए बताया कि एक अहिन्दीभाषी प्रदेश में हिन्दुस्तानी भाषा के माध्यम से इस संगोष्ठी को आयोजित करना अत्यंत उल्लेखनीय है। इसमें समाज और भाषा दोनों का हित निहित है। मुख्य अतिथि डॉ. मनोरंजन भारती ने वर्तमान संदर्भों में इतने महत्त्वपूर्ण सामयिक विषय पर संगोष्ठी आयोजित होने पर प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने महात्मा गाँधी तथा अन्य महापुरुषों के जीवन से उदाहरण देते हुए यह बताया कि धर्मनिरपेक्षता इस देश की आत्मा है।
    प्रमुख वक्ताओं में संविधान विशेषज्ञ श्री बाबू मैथ्यू ने ‘सामाजिक समरसता’ को सामाजिक तथा संवैधानिक प्रावधानों के द्वारा स्पष्ट किया। साथ ही उन्होंने अन्य देशों के उदाहरण देते हुए बताया कि भारत उन सबसे कितना अलग है। मुंबई से आये उर्दू के विचारक एवं लेखक जनाब शमीम तारिक ने भी एक साथ मिलजुल कर रहने को ही हमारी संस्कृति बताया तथा कहा कि इसमें भले ही कुछ उतार-चढ़ाव आते रहें, किन्तु अगर आम नागरिक सतर्क रहे तो फूट डालने वाली त़ाकतें सफल नहीं हो सकती हैं। भोपाल से आये हिन्दी लेखक श्री अरुण अर्णव खरे ने भी कुछ इसी तरह की बातें रखीं। एक वक्ता के रूप मे बोलते हुए संजीव निगम ने अपने जीवन के कुछ ऐसे प्रसंगों का उल्लेख किया, जो हमारे साप्रदायिक सद्भाव को दर्शाते थे।
    संगोष्ठी में उपस्थित श्रोताओं को भी अपनी बात कहने का तथा प्रश्न पूछने का पूरा अवसर दिया गया। संगोष्ठी के आयोजन में सभा के परियोजना समन्वयक राकेश कुमार त्रिपाठी, जयभारती हिन्दी विद्यालय संस्था के डॉ. रविंद्रन और इंदुकान्त अंगिरस ने सक्रिय भूमिका निभायी।