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हिन्दुस्तानी प्रचार सभा

Hindustani Prachar Sabha

7, Netaji Subhash Road, Charni Road (West), Mumbai – 400 002

7208525985/9820129917

hps.sabha@gmail.com

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हिन्दुस्तानी प्रचार सभा

7, Netaji Subhash Road, Charni Road (West),
Mumbai – 400002
7208525985/9820129917
hps.sabha@gmail.com

What's New
  • Before Independence Day on 14th August, 12 non-Hindi speaking teachers will be honoured with Mahatma Gandhi Hindi Shiksha Pratibha Samman - 2025.
  • Hindi classes for foreigners starts from 23th August 2025
  • To organise various programmes with the Government College of Arts, Science & Commerce, Quepem, Goa, we are signing MOU on 14th August 2025
  • Books of POCSO Act in 3 languages (English, Hindi, Marathi) is being finalised for printing.
  • All India Hindi essay competition announced from 7 August 2025(Topic: Will India ever become a developed country or will it always remain a developing country?
  • Approval letter received from Tamil Nadu Prison Headquarters to start library in all 15 Central Prisons.
  • Hindustani Prachar Sabha started libraries in 14 different central and district Prisons in Maharashtra.
  • A one day national seminar on Tribal Literature and its Challenges was held on 5th July.
  • Launch of a Sabha's Library in Arthur Road Jail, Aurangabad Jail and Washim District Jail in July.
  • Quarterly magazine Hindustani Jabaan Hindi and Urdu published in the month of June.
  • Admission process for Saral Hindi classes has started in approximately 28 colleges.
  • Meeting with Kanta Rai ji, Director of Laghu Katha Shodh Kendra Bhopal on 1st Jul

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पेरीनबेन कैप्टन अखिल भारतीय निबन्ध प्रतियोगिता (अहिन्दी भाषी क्षेत्रों के विद्यार्थियों के लिए) विषय : मैं अगले 25 वर्षों में भारत में यह बदलाव देखना चाहता हूँ।
निबंध प्रतियोगिता परिणाम
(प्रथम 25 चुने गए विद्यार्थी)

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पेरीनबेन कैप्टन अखिल भारतीय निबन्ध प्रतियोगिता (अहिन्दी भाषी क्षेत्रों के विद्यार्थियों के लिए)
विषय : मैं अगले 25 वर्षों में भारत में यह बदलाव देखना चाहता हूँ।
निबंध प्रतियोगिता परिणाम (प्रथम 25 चुने गए विद्यार्थी)

  1. Ashutosh Kumar Raut ------ University of Calcutta
  2. Kavya ------ Lingraj College, Belgavi
  3. Prajjwal Nadgauda ------ Lingraj College, Belgavi
  4. Hritwika Majumdar ------ National Institute of Technology, Agartala
  5. Ujjwal Goyal ------ Andhra University, Vishakhapatnam
  6. R. Trisha ------ Lingraj College, Belgavi
  7. Smriti Singh ------ Presidency University, Kolkata
  8. Anagha Soosan ------ PSG Arts & Science College, Coimbatore
  9. Utkarsha Koregaonkar ------ Goa University, Talgaon, Goa
  10. Bebinanda Shetkar ------ Goa University, Talgaon, Goa
  11. Mary R Lalrinmunpuii ------ Mizoram University,
  12. Menka Kumari Shah ------ Bangai Gaon College, Assam
  13. Ablina Hadassah Behera ------ Women's Christian College, Chennai
  14. Aditi Baggu ------ Woxsen University, Telangana
  15. Yash Das ------ Bedruka College of Commerce and Arts, Hyderabad
  16. E Sadhna Yazhini ------ PSG Arts & Science College, Coimbatore
  17. Arundhati Mohan ------ University of Kerala
  18. Sushantini S.G. ------ Women's Christian College, Chennai
  19. Anjali Kumari R ------ Hindustan College of Arts & Science, Coimbatore
  20. Madhumitha A ------ PSG Arts & Science College, Coimbatore
  21. Manoj Kumar T ------ Chikkanna Government Arts College, Tirupur
  22. Preethika Shetty ------ Bhandarkar's Arts & Science College, Udupi
  23. Himanshi Aswal ------ Hindustan College of Arts & Science, Coimbatore
  24. Sandhya R. ------ Chikkanna Government Arts College, Tirupur
  25. Payal Yadav ------ Bethune College, 24 Pargna, West Bengal

केन्द्रीय जेलों मे पुस्तकालय

हिन्दुस्तानी प्रचार सभा की विशेष परियोजना :
अभी तक देश के 17 राज्यों की 118 जेलों में कैदियों के लिए पुस्तकालयों की स्थापना।


Know More

हिन्दुस्तानी प्रचार सभा

हिन्दुस्तानी के प्रचार-प्रसार में अग्रणी संस्था ‘हिन्दुस्तानी प्रचार सभा’ की स्थापना सन् 1942 में महात्मा गाँधी ने की थी। हिन्दुस्तानी (सरल हिन्दी) के साथ-साथ गाँधीजी के उसूलों के प्रचार-प्रसार में भी यह संस्था कार्यरत है।

‘हिन्दुस्तानी प्रचार सभा’ एक संस्था ही नहीं, एक विश्वास है, वह प्रतीक है ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ और ‘सर्वधर्म समभाव’ का। यह संस्था राष्ट्रीय एकता से जुड़ा हुआ एक इरादा है, जिसे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने ठोस आकार प्रदान किया।

इस संस्था को डॉ. राजेंद्र प्रसाद, मौलाना अबुलकलाम आज़ाद, पंडित जवाहरलाल नेहरू, डॉ. ज़ाकिर हुसैन, आचार्य काकासाहेब कालेलकर, श्री बाला साहेब खेर, डॉ. ताराचंद, डॉ. ज़ाफर हसन, प्रो. नजीब अशरफ नदवी, श्री श्रीमन्नारायण अग्रवाल, श्रीमती पेरीन बहन कैप्टन, श्रीमती गोशीबहन कैप्टन, पंडित सुन्दरलाल, पंडित सुदर्शन, श्री सीताराम सेक्सरिया, श्री अमृतलाल नानावटी, श्री देवप्रकाश नायर जैसी बड़ी-बड़ी हस्तियों का सहयोग मिला।

आचार्य काकासाहेब कालेलकर और श्री अमृतलाल नानावटी ने अहमदाबाद, वर्धा और दिल्ली को केन्द्र बनाकर अपना काम जारी रखा और श्रीमती पेरीन बहन कैप्टन ने बम्बई (मुंबई) को चुना तथा महात्मा गाँधी के भाषायी मिशन को कामयाब बनाने की कोशिश में वह लग गयी।


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परी कथाएँ (अंग्रेज़ी-हिन्दी)
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Goldilocks And The Three Bears

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Hansel And Gretal

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Little Snow White

कुल 10 पुस्तकों का सेट

अनुवादक : डॉ. सुशीला गुप्ता
मूल्य :Rs. 1250/-
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अंतर्महाविद्यालयीन प्रतियोगिताओं का आयोजन

कोयंबत्तूर. अविनाशी रोड स्थित पीएसजी कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड साइंस के हिंदी विभाग और हिंदुस्तानी प्रचार सभा, मुंबई के संयुक्त तत्वावधान में मंगलवार को हिंदी भाषण और निबंध लेखन आदि अंतर्महाविद्यालयीन प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया। पोदिगै सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम में पारंपरिक रूप से प्रार्थना और दीप प्रज्ज्वलन के बाद स्वागत भाषण देते हुए हिंदी विभाग की विभागाध्यक्षा डॉ. जी. रेणुका ने कहा कि इस आयोजन में 15 महाविद्यालयों के करीब 200 विद्यार्थी भाग ले रहे हैं। ऐसे आयोजन हिंदी के विकास के साथ-साथ देश की अन्य क्षेत्रीय भाषाओं और विविध संस्कृतियों को भी मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अध्यक्षीय भाषण देते हुए प्रभारी प्रधानाचार्य डॉ. एम. सेंगुट्टुवन ने कहा कि वर्तमान समय में हिंदी के साथ-साथ देश की अन्य भाषाओं को भी प्रोत्साहित किए जाने की जरूरत है। इस तरह के आयोजन इस दिशा में एक सार्थक कदम साबित हो सकते हैं। मुख्य अतिथि एवं राजस्थान पत्रिका चेन्नई के संपादक डॉ. पी.एस. विजयराघवन ने कहा कि भाषा हमें जोड़ने का काम करती है। सही ढंग से किसी भाषा को सीखने के लिए उसे सुनना बहुत जरूरी है। सुनने से हमारा शब्द भंडार तो बढ़ता ही है साथ ही साथ हमें अपने विचारों को सही ढंग से अभिव्यक्त करने में भी मदद मिलती है। हिन्दुस्तानी प्रचार सभा के परियोजना समन्वयक राकेश कुमार त्रिपाठी ने कार्यक्रम की विविधता और उसके उपयोग के साथ हिंदुस्तानी प्रचार सभा, मुंबई की ओर से संचालित विविध कार्यक्रमों पर प्रकाश डाला और प्रतिभागियों के उज्जवल भविष्य की कामना के साथ सभी विद्यार्थियों को प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया। कार्यक्रम का संचालन हिंदी विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. कुंवर संजय विक्रम सिंह और धन्यवाद ज्ञापन सहायक प्राध्यापक गौरव सिंह ने किया। सहायक प्राध्यापक डॉ. अर्चना त्रिपाठी ने प्रतिभागियों को प्रतियोगिता के नियमों के बारे में विस्तार से समझाया। सहायक प्राध्यापक डॉ. सतीश कुमार श्रीवास्तव एवं महाविद्यालय के विद्यार्थियों का भी सराहनीय योगदान रहा।

महात्मा गाँधी हिन्दी शिक्षा प्रतिभा सम्मान 2025

स्वतंत्रत दिवस भारत का एक दिन का समारोह नहीं बल्कि गर्व व स्वाभिमान का दिन है। हिन्दुस्तानी प्रचार सभा द्वारा स्वतंत्रता दिवस के एक दिन पूर्व हिन्दीतर भाषी शिक्षकों के स्वाभिमान व सम्मान का दिन रहा। हिन्दी शिक्षा के क्षेत्र में योगदान तथा समर्पण को देखते हुए महाराष्ट्र्, गोवा, कोयम्बटूर, केरल, तमिलनाडु तथा पॉन्डिच्चेरी के शिक्षकों को ''महात्मा गाँधी हिन्दी शिक्षा प्रतिभा सम्मान'' से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में नवभारत टाईम्स के संपादक कप्तान सुंदर चंद ठाकुर ने विद्यार्थियों तथा शिक्षकों में भारत के अतुलनीय गौरव और वर्तमान तथा सुंदर भविष्य की कल्पना को साकार करने की ओर प्रेरित किया। सभा के न्यासी व मानद कोषाध्यक्ष श्री अरविंद डेगवेकर ने सभा के भविष्य की परिकल्पना तथा उसकी उपलब्धियों पर प्रकाश डाला। विशेष कार्य अधिकारी डॉ. रीता कुमार तथा परियोजना समन्वयक राकेश कुमार त्रिपाठी ने कार्यक्रम का संचालन किया व सूत्रधार की भूमिका निभायी। कार्यक्रम के अंत में देवमणि पाण्डेय के संयोजन में कवि सम्मेलन भी आयोजित किया गया। श्री विनोद दुबे, रोशनी किरण तथा दमयंती शर्मा ने अपनी कविताओं और गजलों से श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। महाविद्यालयों से बड़ी संख्या में विद्यार्थियों ने भाग लिया।

आदिवासी साहित्य और उसकी चुनौतियाँ

हिंदुस्तानी प्रचार सभा, मुंबई के नये शैक्षणिक सत्र काआगाज़। एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी से। विषय : 'आदिवासी साहित्य और उसकी चुनौतियाँ'। इसकी प्रस्तावना दी 'हिं प्र स' की विशेष कार्याधिकारी व 'हिंदुस्तानी ज़बान' पत्रिका की संपादक डॉ रीता कुमार ने। सभा के ट्रस्टी व मानद सचिव श्री फिरोज़ पैच ने अपने स्वागत वक्तव्य में 'धरा पर बसे आदिवासियों की पहली मलकियत' पर प्रकाश डाला। बाकी हम सब तो विस्थापित हुजूम हैं। स्वार्थी और चतुर। खुद को पुनः स्थापित करने के लिए हमने आदिवासियों के संसाधनों को हथियाना शुरू किया। परिणाम एक अबूझी पहेली बन कर रह गया। स्थापित विस्थापित हो गये और हम---! यही है यथार्थ!! संगोष्ठी के मुख्य अतिथि श्री संतोष चौबे, प्रथम सत्र के अध्यक्ष डॉ करुणाशंकर उपाध्याय, द्वितीय सत्र के अध्यक्ष डॉ दामोदर खडसे ने सभी प्रबुद्ध वक्ताओं के वक्तव्यों से सहमति जताई और यह स्वीकार किया कि आदिवासियों की मार्मिक अनुभूतियाँ तो वे स्वयं ही समझते हैं क्योंकि वे ही झेलते हैं। हम तो रखते हैं सिर्फ सहानुभूति; कुछ सुनकर कुछ पढ़कर। और चला देते हैं कलम। बन जाते हैं उनके मसीहा। "हमें मसीहा नहीं, सहयोगी चाहिए।" पीड़ायुक्त स्वाभिमानी दृढ़ता थी आदिवासी सुश्री वंदना टेटे की वाणी में। पर्यावरण की महत्ता में उन्होंने आदिवासी बोली में एक मधुर गीत भी सुनाया। आदिवासी प्रो डॉ विनोद कुमरे ने 'जय जोहार' अर्थात 'सबका कल्याण करनेवाली धरती की जय हो' के साथ अपना वक्तव्य शुरू किया। पर्यावरण से प्रेम और उसकी रक्षा ही आदिवासियों कि परम धर्म है।और यही इतर लोगों का भी होना चाहिए। पर 'मुनाफ़ा' और 'संचय' की आपाधापी में पूँजीवादी उसका हनन करने में जुटे हैं। यह प्रहार है आदिवासियों की जीविका पर, उनकी जीवन शैली पर, उनकी आस्था पर। ऐसे में उन्हें अपने अस्तित्व और जिजीविषा की चिंता होना स्वाभाविक है। और उसके खिलाफ़ आवाज़ उठाना उनका अधिकार। आदिवासी श्री अविनाश पोईनकर ने जोशीली वाणी में आदिम आदिवासी से अपनी बात शुरू करते हुए यह मुद्दा उठाया कि एक शिक्षित आदिवासी जो विस्थापित होकर मुख्य धारा में मिल चुका है उसके पास अब भाषा है, अपनी स्थिति को व्यक्त करने के लिए; पर उन 'ख़ालिस' अनपढ़ आदिवासियों का क्या जिनकी बोली भी उनकी अपनी नहीं रही। वह विलुप्त हो गयी, राजनीतिक दाँव-पेच में। ऐसे में उनके ऑरेचर् (वाचिक) साहित्य का हश्र क्या? वे जैसे-तैसे सँभाले हुए हैं अपने हुनर को, कला-कौशल को, ज्ञान को, पर कब तक? सुश्री मधु कांकरिया जो कई वर्ष आदिवासी क्षेत्रों में रहीं, उन्होंने अपने परोक्ष अनुभवों को साझा किया। आदिवासी समुदाय जो हर तरह की प्राकृतिक संपदा से संपन्न है, वह इतना दीन-दुखी क्यों? उत्तर स्पष्ट है--- भुमंडलीकरण और बाजारवाद की मार! पूरा सच कोई जानना चाहता है तो वह जाए और रहे उनके साथ वर्षों तक, उनकी तरह। सिर्फ़ पर्यटक बनकर जाने से आप आदिवासी साहित्यकार नहीं बन सकते। संगोष्ठी का जितना वृहद् और नाज़ुक विषय उतनी गहन और समृद्ध विद्वान वक्ताओं की संवेदना। बात आदिवासियों के स्वामित्व की जो थी। उनका अतीत, वर्तमान और भविष्य। यानि आदिवासी-विमर्श के विविध आयाम। डॉ जवाहर कर्नावट ने पत्रकार की हैसियत से लिए आदिवासी संबंधित साक्षात्कारों पर प्रकाश डाला और इस तथ्य को सराहा कि आदिवासी बोलियों और भाषाओं, बल्कि सभी भाषाओं, का संरक्षण उस क्षेत्र की संस्कृति जानने के लिए ज़रूरी है। आदिवासी संस्कृति के भविष्य की बात की डाॅ हूबनाथ पांडेय ने। और डाॅ बजरंग बिहारी तिवारी ने पूर्व आधुनिक हिंदी साहित्य में आदिवासी पात्रों पर बात करते हुए इस बात पर ज़ोर दिया कि वे तब भी मुख्य धारा से संबंधित थे और आज भी हैं। हाँ तौर-तरीके बदल सकते हैं। बात जब आदिवासी साहित्य की थी तो संबंधित भ्रामक विचारों का निवारण भी ज़रूरी था। जैसे : आदिवासी साहित्य किसे कहें? आदिवासी साहित्यकारोंं द्वारा रचा साहित्य, आदिवासी साहित्यकारों द्वारा आदिवासियों पर रचा साहित्य या गैर आदिवासी साहित्यकारों द्वारा आदिवासियों पर रचा साहित्य। तर्क अनेकों। श्री भालचंद्र जोशी ने आदिवासी जीवन के यथार्थ को सामने रखकर उनके द्वारा रचे गये तमाम साहित्य का उल्लेख भी किया। कार्यक्रम का संचालन राकेश कुमार त्रिपाठी बहुत सतर्कता से करते रहे। यह तो थी संक्षेप में मंच की बात। मंच के सामने का दृश्य तो और भी लुभावना। कनिष्ठ महाविद्यालयों के हिंदी प्रेमी विद्यार्थियों का टोला, अपने शिक्षकों के साथ। ऐसा प्यारा दृश्य बहुत कम दिखता है। यानि सभागृह के बाहर तक युवा श्रोता। फिर कैसे कोई माने कि हिंदी नयी पीढ़ी पर अपना वर्चस्व खोती जा रही है। डॉ रीता कुमार ने प्रस्तावना में कहा कि, "ऐसी संगोष्ठियों के पीछे मेरा मकसद यही है कि हमारे सामने बच्चे बैठे हों।" और वे थे। अंत तक। उसी तादाद में। पूरे कार्यक्रम की व्यवस्था अति उत्तम। श्रोताओं के रूप में वरिष्ठ साहित्यकारों से सजे उस माहौल में हर कोई मुग्ध।

अच्छा मानसिक स्वास्थ्य : सफलता और खुशी की कुंज

हिन्दुस्तानी प्रचार सभा तथा बॉम्बे साइकियाट्रिक सोसाइटी के संयुक्त तत्वाधान में दिनांक 1 ऑक्टोबर 2024 को चर्चगेट स्थित इंडियन मर्चेंट चैंबर में एक दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए प्रसिद्ध मनोचिकित्सक डॉ. हरीश शेट्टी ने जीवन की आवश्यक जरूरतों के बारे में बताते हुए हर छोटी-छोटी बातों पर बच्चों के बदलते मनोविज्ञान के विषय में जागरूक किया। सभा के न्यासी व मानद सचिव श्री फिरोज पैच ने मानव जीवन के बदलते मूल्यों के बारे में अपने विचार रखे । बाम्बे साइकियाट्रिक सोसाइटी की अध्यक्ष डॉ. रुक्षेदा सैय्यदा ने विद्यार्थियों के इमोशन, फीलिंग के संबंध में अनेक पहलुओं पर चर्चा की और मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता के विषय में बताते हुए पूरे कार्यक्रम को सफल बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
डॉ. मानसी जैन ने बेहतर आत्म छवि और आत्मसंवाद के साथ ही दैनिक जीवन में अधिक सोचने, काम को टालने और परीक्षा की घबराहट से उबरने के तरीके के बारे में विद्यार्थियों से अपने अनुभव साझा किए। डॉ. प्रियंका महाजन ने जीवन में सही निर्णय लेना और नशीले पदार्थों को ना कहने की आदत को लाने की बात की तथा विद्यार्थियों के भीतर उठते द्वन्द्व के कारण हर छोटी बातों पर अपने आपको समाप्त करने (सुसाइड) जैसी अव्यावहारिक परिस्थियों से निपटने कि स्थिति को समझने व जीवन को बेहतर मार्ग पर ले जाने के तरीके को बताया।, सुश्री मेहजबीन डोरडी, डॉ. किरण जठार व डॉ. संतोष कौल काक ने पैनल वार्ता में विद्यार्थियों से कॉलेज और उससे आगे के निर्णयों के साथ ही जीवन में आने वाली समस्याओं को समझने और उन्हें लिखकर उसपर विचार करने के लिए विद्यार्थियों को प्रेरित किया साथ ही जीवन कि उन तमाम परिस्थितियों जिसे वे समस्या या कठिनाई मानते हैं उसके अंतर को समझकर उसका निराकरण कर सकें उन बातों को साझा किया जिसका मॉडरेशन डॉ. अल्केश पाटील ने किया। डॉ. नाहिद दवे ने स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता को लेकर अपनी चिंता प्रकट करते हुए विद्यार्थियों को उससे निपटान के कुछ उपाय साझा किए।
कार्यक्रम का संचालन सभा की विशेष कार्य अधिकारी डॉ. रीता कुमार ने तथा आभार ज्ञापन सभा के परियोजना समन्वयक राकेश कुमार त्रिपाठी ने किया। सभागार में 300 से अधिक विद्यार्थियों व शिक्षकों ने कार्यक्रम को सफल बनाने में सहयोग दिया व अपना ज्ञानार्जन किया।

शिक्षा से संस्कार पैदा होते है – डॉ. भूषण कुमार उपाध्याय

हिन्दुस्तानी प्रचार सभा द्वारा महिला सशक्तीकरण- मिथ या वास्तविकता विषय पर दिनांक 16-17 फरवरी 2024 को दो-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि डॉ. भूषण कुमार उपाध्याय (पूर्व पुलिस महानिदेशक) ने ऋगवेद में वर्णित महिलाओं के कार्यों व उपलब्धियों बात करते हुए कहा कि ऋगवेद में भी 27 स्त्रियाँ मंत्र की दृष्टा मानी जाती हैं यदि उन्हें ऋगवेद पढ़ना वर्जित था? महिलायें हमेशा सबला रही हैं वे कभी अबला नहीं थीं। सभा की विशेष कार्य अधिकारी डॉ. रीता कुमार ने कार्यक्रम की प्रस्तावना प्रस्तुत की। सभा के ट्रस्टी एवं मानद सचिव फ़िरोज़ पैच ने स्वागत वक्तव्य देते हुए समाज में महिलाओं पर हो रहे विभिन्न प्रकार के अत्याचारों के आंकड़ों को प्रस्तुत किया। वरिष्ठ कथाकार सुधा अरोड़ा ने ‘साहित्य में महिला सशक्तीकरण के स्वर’ में अध्यक्ष की भूमिका निभाई तथा डॉ. हूबनाथ पाण्डेय, डॉ. मंजुला देसाई और डॉ. सतीश पाण्डेय वरिष्ठ कवि, आलोचक विजय कुमार, कथाकार ममता सिंह, डॉ. दिनेश पाठक, डॉ. सुमन जैन और भुवेन्द्र त्यागी ने ‘वर्तमान सामाजिक परिप्रेक्ष्य में महिला सशक्तीकरण’ विषय पर उद्बोधित किया। ‘महिला सशक्तीकरण और कानून’ पर आधारित दूसरे दिवस के अवसर पर सामाजिक कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता आभा सिंह ने कहा कि हमारे देश में कानून तो बहुत हैं किन्तु समय सीमा और सख्ती न होने के कारण समाज में अराजकता बनी हुई है और अपराधी अपराध कर के भी खुले आम घूमता है। अधिवक्ता एलिन मार्कवीस, रिलयांस अस्पताल की डॉ. मेहज़बीन डोरडी ने समाज में हो रहे मानसिक विचारों को अपने दृष्टि से समझकर उन्हे सुलझाने के अपने प्रयासों पर बल दिया और चित्रा देसाई ने अपने वक्तव्य प्रस्तुत किए। विभिन्न महाविद्यालयों के शिक्षक और विद्यार्थियों ने कार्यक्रम में अपना सहभाग दिया। कार्यक्रम का संचालन परियोजना समन्वयक राकेश कुमार त्रिपाठी तथा गंगाशरण सिंह ने किया। अंतिम सत्र में श्रीमती शशि निगम ने अपनी स्वरांजलि म्यूजिक अकादमी के सदस्यों के साथ नारी शक्ति के सुर विषय पर संगीतमय प्रस्तुति से श्रोताओं/ दर्शकों को भाव विभोर कर दिया।